इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव अपने विवादास्पद बयान के कारण चर्चा में हैं। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद की लीगल सेल के एक कार्यक्रम में कहा कि यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि वह यह बात हाई कोर्ट के जज के रूप में नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत राय के रूप में बोल रहे हैं।
जस्टिस यादव ने अपने बयान में “कठमुल्ला” शब्द का उपयोग करते हुए कहा कि ऐसे लोग देश के लिए खतरनाक हैं और देश की प्रगति में बाधा डालते हैं। उन्होंने भारतीय और अन्य संस्कृतियों की तुलना करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में बच्चों को वैदिक मंत्र और अहिंसा सिखाई जाती है, जबकि कुछ संस्कृतियों में बच्चे पशुओं के कत्लेआम को देखते हुए बड़े होते हैं, जिससे उनके अंदर दया और सहिष्णुता का भाव नहीं रहता।
जस्टिस यादव के इस बयान पर विवाद खड़ा हो गया है। एक वर्ग इसे संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के खिलाफ मान रहा है। वहीं, उनके समर्थकों का कहना है कि यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।
जस्टिस शेखर कुमार यादव का लीगल करियर 34 साल का है। उन्होंने 1988 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की और 1990 में वकील के रूप में प्रैक्टिस शुरू की। इसके बाद वह राज्य सरकार और रेलवे के वकील रहे। 2019 में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का अतिरिक्त जज बनाया गया और 2021 में स्थायी जज के रूप में शपथ दिलाई गई।