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सीरिया में तख्तापलट से भारत की बढ़ी चिंता, कश्मीर पर पड़ सकता है असर

सीरिया की राजधानी दमिश्क में हाल ही में तख्तापलट की खबरें आई हैं, जिसमें राष्ट्रपति बशर अल-असद को विद्रोहियों के डर से देश छोड़कर रूस में शरण लेनी पड़ी है। विद्रोही गुट तहरीर अल शाम ने राजधानी में अपना प्रभाव बढ़ा लिया है, जबकि अमेरिका ने इस दौरान अपने हवाई हमले तेज कर दिए हैं।

हालांकि यह घटना सीरिया का आंतरिक मामला है, लेकिन इसके प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। असद सरकार एक सेक्युलर शासन थी और उसने कश्मीर के मुद्दे पर भारत का हमेशा समर्थन किया था। यहां तक कि इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में भी सीरिया का रुख तुर्की और मलेशिया जैसे देशों से अलग था, जो अक्सर पाकिस्तान का समर्थन करते रहे हैं।

तुर्की का कनेक्शन और भारत की चिंता
सीरिया में तहरीर अल शाम का उभरना भारत के लिए चिंताजनक है क्योंकि यह संगठन तुर्की समर्थित है। तुर्की ने हमेशा कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष लिया है और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत के खिलाफ बयान दिए हैं। असद सरकार के रहते सीरिया ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला माना, लेकिन तहरीर अल शाम के सत्ता में आने के बाद सीरिया का रुख बदल सकता है।

इस्लामिक स्टेट का संभावित उभार
असद सरकार के पतन से एक और गंभीर खतरा इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकी संगठन के पुनरुत्थान का है। 2014 में, असद सरकार ने रूस और ईरान की मदद से आईएस को सीरिया से खत्म कर दिया था। लेकिन अब, अस्थिरता के कारण इस आतंकी संगठन के फिर से उभरने की संभावना है।

आईएस का उभार न केवल मध्य पूर्व बल्कि भारत के कश्मीर क्षेत्र को भी प्रभावित कर सकता है। आईएस पहले भी अपने दस्तावेजों और प्रचार सामग्री में कश्मीर का जिक्र कर चुका है, इसे “खुरासान” क्षेत्र का हिस्सा बताया है।

क्या हो सकता है प्रभाव?

  1. तुर्की समर्थित कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव बढ़ने से भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर के मुद्दे पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  2. आईएस जैसे आतंकी संगठनों के पुनरुत्थान से भारत में आतंकवाद की समस्या और गंभीर हो सकती है।
  3. सीरिया में सत्ता परिवर्तन के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव भारत के कूटनीतिक प्रयासों पर असर डाल सकता है।

भारत के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है। इसे कूटनीतिक स्तर पर न केवल तुर्की और पाकिस्तान की नीतियों का मुकाबला करना होगा, बल्कि आतंकवाद के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए भी सतर्क रहना होगा।

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